एक सज्जन ! भाग 1.
केसरिया साफा
सफ़ेद कुरता
हरी लुंगी
जुबान गूंगी .
खादी -भंडार के प्रवेश -द्वार पर
लटक रहे थे .
बिक जाना चाहिए था ,
अभी तक बिके नहीं ..
भंडार-पाल की आँखों में
खटक रहे थे .
सज्जन ,कुछ जाने -पहचाने से लगे
मैं ,ठिठका,मुडा
उनकी ओर बढ़ा
सवालिया ,नजर से निहारने लगा उनको
वे बोले
पहचाना नहीं ,क्या मुझे ?
सारा हिंदुस्तान मेरा घर है
मेरा नाम ,तिरंगे लाल चक्रधर है
मुझे नहीं पहचानोगे ,तो पछताओगे
इतिहास के पन्नों में कहीं न रह जाओगे .
मैंने पूछ लिया ,
अरे तिरेंगे लाल जी आप ?
आप अभी तक यहाँ क्या कर रहे हैं ?
आज तो पद्रह अगस्त है
सारे बड़े -बड़े लोग आपही के नाम पर व्यस्त हैं .
उन्होंने एक गहरी बात कही
यार !
सारा हिंदुस्तान आज मेरे उन भाईओं के नाम पर दीवाना होता है
जो बिक चुके होते हैं .
मेरा खरीददार नहीं मिला
सो ,मैं यहाँ लटक रहा हूँ
और इस बेचारे भंडार -पाल की आँखों में
खटक रहा हूँ .
ले चलो ना ,तुम मुझे अपने साथ .
बोर हो गया हूँ मैं
थुल- थुले,लिजलिजे स्पर्शों से
घिन आती है मुझे .
मैंने कहा
तिरंगे लाल जी मैं आपको ले जाकर कहाँ रखूँगा
मैं भारत का आम आदमी हूँ
मेरे पास तो न लाल किला है न गाँधी मैदान
न रंगाई न पुताई
न बाँटने को मिठाई.
न फौजों की टोली
न भाषण की बोली
न स्वीडेन की तोपें
न इटली की गोली
कैसे होगी सलामी आपकी ?
.....पवन श्रीवास्तव
केसरिया साफा
सफ़ेद कुरता
हरी लुंगी
जुबान गूंगी .
खादी -भंडार के प्रवेश -द्वार पर
लटक रहे थे .
बिक जाना चाहिए था ,
अभी तक बिके नहीं ..
भंडार-पाल की आँखों में
खटक रहे थे .
सज्जन ,कुछ जाने -पहचाने से लगे
मैं ,ठिठका,मुडा
उनकी ओर बढ़ा
सवालिया ,नजर से निहारने लगा उनको
वे बोले
पहचाना नहीं ,क्या मुझे ?
सारा हिंदुस्तान मेरा घर है
मेरा नाम ,तिरंगे लाल चक्रधर है
मुझे नहीं पहचानोगे ,तो पछताओगे
इतिहास के पन्नों में कहीं न रह जाओगे .
मैंने पूछ लिया ,
अरे तिरेंगे लाल जी आप ?
आप अभी तक यहाँ क्या कर रहे हैं ?
आज तो पद्रह अगस्त है
सारे बड़े -बड़े लोग आपही के नाम पर व्यस्त हैं .
उन्होंने एक गहरी बात कही
यार !
सारा हिंदुस्तान आज मेरे उन भाईओं के नाम पर दीवाना होता है
जो बिक चुके होते हैं .
मेरा खरीददार नहीं मिला
सो ,मैं यहाँ लटक रहा हूँ
और इस बेचारे भंडार -पाल की आँखों में
खटक रहा हूँ .
ले चलो ना ,तुम मुझे अपने साथ .
बोर हो गया हूँ मैं
थुल- थुले,लिजलिजे स्पर्शों से
घिन आती है मुझे .
मैंने कहा
तिरंगे लाल जी मैं आपको ले जाकर कहाँ रखूँगा
मैं भारत का आम आदमी हूँ
मेरे पास तो न लाल किला है न गाँधी मैदान
न रंगाई न पुताई
न बाँटने को मिठाई.
न फौजों की टोली
न भाषण की बोली
न स्वीडेन की तोपें
न इटली की गोली
कैसे होगी सलामी आपकी ?
.....पवन श्रीवास्तव
बहुत बढ़िया...आम आदमी और राष्ट्रध्वज की पीड़ा का अनूठा और सच्चा बयान....इस नज़्म के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें आभार तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए
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